भोजन सम्बन्धी हिदायतें
भोजन सम्बन्धी आत्रेय ऋषि ने जो विधि निषेध बतायेहैं,उनका वैज्ञानिक तथा मनोवैज्ञानिक महत्व है।
भोजन के वक़्त हाथों में रत्न धारण करने का मतलब यह है कि कुछ रत्नों में विष की परीक्षा का गुण होता है,भोजन में विष हो तो रत्नों से पता लग जाता है,।देवताओं को भोग देने का मतलब है पशु पक्षियों, रोगियों को भोजन करवाना।
माता पिता ,गुरु औऱ अतिथि भी देवताओं की श्रेणी में गिने जाते हैं।
सारे शुभ कार्यों का अनुष्ठान उत्तर दिशा की ओर मुंह करके होना चाहिए।इसका वैज्ञानिक कारण ये है कि पृथ्वी के चुम्बकत्व की बल रेखाएं दक्षिण से उत्तर की ओर गति करती हैं।इसलिए ये भी कहा गया है कि लंका की ओर,दक्षिण दिशा की ओर ,पाँव करके नही सोना चाहिए।
अभक्त ,और भूखे सेवकों के पकाया हुआ भोजन इसलिए निषिद्ध कहा गया है क्योंकि उसपर ऐसे सेवकों के कुविचारों का प्रभाव पड़ता है।
मन लगा कर भोजन करना इसलिए हितकर है कि मन कहीं और भटक रहा हो,चिंताग्रस्त,या शोकग्रस्त हो, तो ऐसी अवस्था मे किया गया भोजन पचता नहीं, क्योंकि चबाते समय भोजन में मिलने वाले रस मुँह में नहीं बनते।
दीपाली अग्रवाल
सुजोक थेरेपिस्ट, नेचरोपैथ
9887149904